नई ख़बर : साल 2022 ने समाज को कई स्तर पर बदला। इस साल भारत कोविड-19 के प्रकोप से बाहर आया। समाज में वैचारिक विभाजन बढ़ा। सामाजिक और सांप्रदायिक दरारें गहरी हुईं। साथ ही भाजपा (BJP) और विपक्ष (Opposition) के बीच राजनीतिक खाई (Political Chasm) चौड़ी हुई।
भाजपा ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) सहित सात राज्यों के चुनावों में से पांच में जीत हासिल कर अपना चुनावी दबदबा बनाए रखा। हालांकि साल के अंत में हुआ हिमाचल प्रदेश का विधानसभा चुनाव उसके लिए रियलिटी चेक साबित हुआ। इस साल भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ही भारतीय राजनीति के केंद्र में रहे। चुनावी रूप से उनकी लोकप्रियता कमोबेश बरकरार रही।
कांग्रेस (Congress) पर लंबे समय से सवाल उठ रहे थे कि आखिर उसकी कमान किसके हाथ में है। साल 2022 में कांग्रेस ने इसका जवाब दे दिया। इसी साल मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुने गए। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक की महत्वाकांक्षी यात्रा (भारत जोड़ो यात्रा) ने लाभ तो पहुंचाया है लेकिन पार्टी का चुनावी संकट जारी रहा।
आम आदमी पार्टी (AAP) और तृणमूल कांग्रेस (TMC) जैसी पार्टियों ने नए क्षेत्रों में जाकर पुरानी पार्टियों को चुनौती दी। आप ने तो 2022 में अपनी जोरदार धमक का एहसास दिलाया। उसने पंजाब (Punjab) में कांग्रेस को पटखनी दी, गोवा (Goa) और गुजरात (Gujarat) में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
साल 2022 में संसद के बाहर और अंदर दोनों जगह राजनीति में कड़वाहट बढ़ गई है। सोशल मीडिया और अन्य जगहों पर बातचीत ने स्पष्ट सांप्रदायिक रंग ले लिया। चाहे वह ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद में मुकदमेबाजी हो, उदयपुर की भीषण हत्या हो, श्रद्धा वाकर की जघन्य हत्या हो या शाहरुख खान व दीपिका पादुकोण के गाने पर बेतुका विवाद- इन सभी मुद्दों की वजह से सांप्रदायिकता की आग लगातार जलती रही है।
2023 का राजनीतिक कैलेंडर हाई स्टेक वाले चुनावी राज्यों से भरा हुआ है। 2023 की राजनीतिक घटनाएं इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनमें 2024 की लोकसभा चुनाव के बहस को आकार देने की क्षमता होगी।
2024 की राजनीतिक को आकार देगा 2023
2023 पूरी तरह से 2024 की राजनीतिक पटकथा को आकार देगा। अगले पूरे साल भाजपा और कांग्रेस चुनावी मोड में रहेंगे। फरवरी से मार्च के बीच त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में चुनाव होंगे। मई में कर्नाटक और नवंबर से दिसंबर बीच मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में चुनाव होगे। इन राज्यों के परिणाम से पता चलेगा कि भारतीय राजनीति की हवा का रुख किस तरफ है।
सत्तारूढ़ भाजपा 2022 में गुजरात, यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में जीत हासिल करने में कामयाब हुई है। अगले साल जिन नौ राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें लोकसभा की 116 सीटें हैं। इनमें से कुछ ने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अलग-अलग परिणाम दिए थे। 2018 में भाजपा राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार गई, लेकिन एक साल बाद हुए लोकसभा चुनावों में इन्हीं राज्यों ने कांग्रेस को हरा दिया था।
कर्नाटक में सत्ताधारी पार्टी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। राजस्थान में कांग्रेस की स्थिति अलग नहीं है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चौंका सकते हैं। तेलंगाना में भाजपा चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को हटाने की कोशिश करने के लिए अपनी पूरी ताकत और संगठनात्मक ताकत का इस्तेमाल करेगी – जिसे अब भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) नाम दिया गया है। अगर भाजपा जीतती है तो उसे दक्षिण भारत का दूसरा राज्य मिल जाएगा।
टीएमसी के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण वर्ष होगा। ममता बनर्जी की पार्टी पश्चिम बंगाल के बाहर अपनी राजनीतिक उपस्थिति को विस्तार देने की इच्छुक है। पंजाब में आप की भारी सफलता और गोवा (2 सीटों) और गुजरात (5 सीटों) में उसकी छोटी लेकिन महत्वपूर्ण शुरुआत ने टीएमसी को चिंतित और आशान्वित दोनों बना दिया होगा। ममता बनर्जी की पार्टी त्रिपुरा और मेघालय में पैठ बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।
बजट, जी-20 और राम मंदिर
भाजपा का मानना है कि मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता और वोटरों से जुड़ाव काफी हद तक बरकरार है। जबकि जाति, समुदाय और क्षेत्रीय समीकरण राज्य के चुनावों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और अभियान अक्सर स्थानीय मुद्दों के आसपास केंद्रित होते हैं। लेकिन सत्तारूढ़ दल मोदी के करिश्मे और अपील के भरोसे है। ऐसे में 2023 एक बार फिर मोदी के करिश्मे की जांच होनी है।
अगले साल मोदी सरकार के हर फैसले और नीतिगत घोषणा को लोकसभा चुनाव के नजरिए से देखा जाएगा। सरकार की राजनीतिक रणनीति की पहली झलक केंद्रीय बजट 2024 में मिल सकती है। क्या सरकार बड़े धमाकेदार लोकलुभावन वादों सहारा लेगी? देखना होगा सरकार आर्थिक विकास और चुनावी अनिवार्यताओं के बीच संतुलन कैसे स्थापित करती है?
सरकार का ज्यादातर ध्यान सितंबर में होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन पर रहेगा। सरकार पहले ही भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिलने के ईर्द-गिर्द हाइप क्रिएट कर चुकी है। अब आगे यह दिखाने की कोशिश होगी कैसे मोदी के नेतृत्व में भारत का कद बढ़ रहा है।
सरकार दुनिया को संदेश देने के लिए शिखर सम्मेलन से पहले जम्मू-कश्मीर में पारदर्शी चुनाव कराने की इच्छुक होगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गर्मियों में जम्मू -कश्मीर में विधानसभा चुनाव होंगे?
वर्ष की दूसरी छमाही में अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के लिए बिल्ड-अप देखा जाएगा। निर्माण की देखरेख करने वाले ट्रस्ट ने संकेत दिया है कि मंदिर खोलने का जश्न दिसंबर में लोकसभा चुनाव के समय शुरू होगा।